धर्म रथ सूक्ष्म उसकी अनुभूति धर्म का पालन करने वाले को होती है

नरसिंहपुर। ग्राम सिंहपुर में चल रही श्रीराम कथा में दंडी स्वामी सदानंद जी महाराज ने कहा कि अविद्या रूपी लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए श्रीराम ने नल नीर के द्वारा श्रीराम सेतु का निर्माण कर लंका पर आक्रमण कर दिया। विभीषण को संदेह हुआ रावण विशाल रथ पर बैठकर आया हैं और श्रीराम के पास पादुका भी नहीं कैसे विजय प्राप्त करेंगे, यहां स्वामी जी ने धर्म रथ का प्रसंग सुनाया। कि विभीषण यह अधर्म के साथ धर्म युद्ध हैं, रावण अधर्म के रथ पर बैठा हुआ है, और में धर्म रथ पर रावण का रथ दिखाई पड़ रहा है। मेरा धर्म रथ सूक्ष्म हैं उसकी अनुभूति धर्म का पालन करने वाले को ही होती है ।
राम और रावण दोनों आमने सामने खड़े होकर युद्ध करने लगे। उनकी गदाओं, मूसलों की आवाज तथा बानो के पंखों की सन सुनाते हुई हवा से सातों समुद्र विक्षुब्ध हो उठे। इस युद्ध को देखकर आकाश में ऋषिगण, देवगण, आदि प्रार्थना करने लगे कि राघव युद्ध में विजयी हो इस प्रकार कहते हुए श्री राम और रावण के अत्यंत रोमांचकारी युद्ध को देखने लगे।
तदनन्तर राम ने विषधर सर्प के समान बाण का संधान कर उसके द्वारा रावण का मुकुट और कुंडलों से युक्त एक सुंदर मस्तक काट डाला। वह सिर पृथ्वी पर गिर पड़ा तभी उसके शरीर से दूसरा नया सिर उत्पन्न हो गया राम ने इस सिर को भी काट दिया। तो- ’काटत ही पुनि भये नवीने राम बहोरी भुजा सिर छीने’
उसके कटते ही पुनः नया सिर उत्पन्न हो गया राम ने उसे भी काट डाला। इस प्रकार राम रावण के सिर काटते रहे और उसके नए सिर्फ उत्पन्न होते रहे इस प्रकार रावण के 100 सिर कट जाने पर भी जब उसके मस्तकों का अंत और रावण का विनाश दिखाई नहीं दे रहा था तब राम चिंता करने लगे।
मैंने जिन बाणों से मारीच, खर, दूषण, विराध, कबंध, शाल वृक्ष और बाली को मारा, जिनकी अमोघता का विश्वास कर लिया था वही बाण आज रावण के प्रति तेज हीन हो गए हैं इसका क्या कारण हो सकता है। इस तरह चिंता करके राम ने रावण की छाती पर बाण बरसाए रावण ने उन्हें काटकर राम को कथाओं की वर्षा करके राम को पीड़ित कर दिया। वह कभी आकाश में कभी पृथ्वी पर और कभी पर्वत के शिखर पर होकर युद्ध करता था।
श्री राम और रावण का महायुद्ध दिन-रात चलता रहा, एक क्षण के लिए भी विराम नहीं हुआ उन दोनों के युद्ध में श्री राम की विजय होते ना देख देवराज इंद्र के सारथी महात्मा मातलि ने श्रीराम को कुछ स्मरण दिलाते हुए कहा बीरबल आप अज्ञानी पुरुषों के समान व्यवहार क्यों कर रहे हैं? प्रभु! आप इसके वध के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कीजिए।
मातलि के इस वाक्य से रामचंद्र जी को उस अस्त्र का स्मरण हो आया और उन्होंने वेद विधि से धनुष पर ब्रह्मास्त्र चढ़ाया और उसकी प्रत्यंचा को जोर से खींच कर वह ब्रह्मास्त्र रावण पर चला दिया।
यह वही बाण था जिसे पहले भगवान अगस्त ऋषि ने रघुनाथ जी को दिया था यह विशाल बाण ब्रह्मा जी का दिया हुआ था। और युद्ध में अमोघ था ब्रह्मा जी ने इंद्र के लिए उसका निर्माण किया था। भगवान इंद्र के हाथों छूटे वज्र के समान दुरात्मा रावण के हृदय को विदीर्ण कर डाला।
